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Monday, May 7, 2012

क्या आप सचमुच पत्रकारिता में आना चाहते हैं

सुशील झा हिन्दी पत्रकारिता विभाग के 1998-99 बैच के छात्र रहे हैं. आईआईएमसी के बाद समाचार एजेंसी भाषा के साथ मुख्यधारा की पत्रकारिता में कदम रखने वाले सुशील बीबीसी हिन्दी सेवा के लिए दिल्ली से काम करते हैं. इससे पहले वो बीबीसी के लिए लंदन के अलावा मुंबई में भी काम कर चुके हैं.
सुझाव देना सबसे कठिन काम होता है और पत्रकारों को तो हमेशा सुझाव देने से बचना चाहिए. ये आदत लग जाती है तो फिर नेता, अभिनेता, क्रिकेटर या फिर जो बीट कर रहे हों उसी को सुझाव देने लग जाते हैं पत्रकार. ऐसा मेरा अनुभव है. लेकिन चूंकि पत्रकार हैं तो होने वाले पत्रकारों को सुझाव दिया जा सकता है इसलिए सुझाव दे रहे हैं.

लिखित परीक्षा, साक्षात्कार आदि को भूल कर ये सोचना ज़रुरी है कि क्या आप सचमुच पत्रकारिता में आना चाहते हैं या नहीं. ये जवाब सही मायने में आपका दिल ही आपको दे सकता है.

पैसा, नाम, शोहरत इनके चक्कर में न आएं. अगर आपकी हर नई चीज़ में रुचि है, चाहे वो राजनीति हो, खेल हो, फ़िल्म हो या फिर आईपॉड से लेकर आईफोन, सैमसंग के नित नए उत्पाद हों. किसानी में रुचि हो, कारखानों में रुचि हो और खूब पढ़ने में जो मिल जाए, आनंद आता हो तो समझिए मोटा मोटी पत्रकार बनने के गुण हैं.

पत्रकारिता अभी भी कैरियर नहीं कहा जा सकता कई मायनों में लेकिन वो बात फिर कभी. फिलहाल दो सुझाव लिखित परीक्षा के लिए और चार सुझाव साक्षात्कार, बहस आदि के लिए.

लिखित परीक्षा में नियत शब्द सीमा में लिखें. लिख कर अभ्यास करें कि आप जो लिख रहें वो आप दोबारा पढ़ते हैं तो एक वाक्य से दूसरे वाक्य में तारतम्य है या नहीं. एक वाक्य से दूसरे वाक्य पर जाते हुए झटका तो नहीं लगता. पढ़ने में वाक्य दर वाक्य स्मूथ मूवमेंट हो रहा है या नहीं. एक आइडिया से दूसरे आइडिया को जोड़ पा रहे हैं या नहीं. कुछ भी नहीं लिखना है. तार्किक, तारतम्य और संतुलित लिखना ज़रुरी है. गरिष्ठ हिंदी से बचें. सामान्य भाषा में बिना अशुद्धियों के अपनी बात रखने की कोशिश करें, शब्द सीमा में. ज्ञान न बघारें.

दो तीन अख़बार, पत्रिकाएं पढ़ें. एक दो बुलेटिन भी देंखें. इससे किसी भी विषय के अलग-अलग दृष्टिकोणों का पता चलेगा. हर विषय के कई कोण होते हैं ये बात ध्यान रखें.

साक्षात्कार और लिखित में भी अगर कोई सवाल निजी हो मसलन- आप पत्रकार क्यों बनना चाहते हैं. सच लिखें. बिल्कुल सच. कॉपी जांचने वाले और साक्षात्कार लेने वाले बुद्धिमान लोग होते हैं. वो झूठ पकड़ लेते हैं क्योंकि वो हमारे-आपके जैसे कई लोगों से मिलते ही रहते हैं.

निजी अनुभव से कह रहा हूं हमने भी इंटरव्यू में सच बोला था और डर रहे थे कि बिना किसी अनुभव के हमारा नहीं होगा लेकिन हुआ. इसलिए सच, साफ और स्पष्ट बात सामने रखें. पत्रकारिता में अंततः वही सफल होता है जो सच को साफ और स्पष्ट तरीके से दूसरों तक पहुंचा पाता है.


अंत में
शुभकामनाओं सहित
सुशील

1 comment:

aadarsh said...

add nd pr k liye communication stratzy kaise banaye