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Monday, June 23, 2008

तैयारी करें, टेंशन न लें....

प्रदीप सूरीन वैसे तो आईआईएमसी में हिंदी पत्रकारिता विभाग के छात्र रहे लेकिन जब काम शुरू किया तो अंग्रेजी चैनलों में भी काम करने से परहेज नहीं किया. इस समय वे न्यूज़ एक्स चैनल के एसोसिएट प्रोड्यूसर हैं.




सबसे पहले सभी दोस्तों को बहुत-बहुत बधाई जिन्होंने आईआईएमसी की परीक्षा पास कर ली है. आप सबको इंटरव्यू के लिए चिट्ठी मिलते ही लगने लगा होगा कि चलो अब तो मेरा सेलेक्शन पक्का है और हो भी क्यों न..... लेकिन

जब मुझे इंटरव्यू का लेटर मिला था तो मैंने भी ऐसे ही सोचा था पर मैं उतना रोमांचित नहीं था क्योंकि मैंने इससे पहले भी कई बार इंटरव्यू फेस किया था इसलिए पता था कि यह किसी भी तरह से आसान नहीं होगा.

इंटरव्यू लेटर मिलते ही आप सबसे पहले आईआईएसी की ओर भागते हैं. वहाँ जाकर पता करने की कोशिश करते हैं कि इंटरव्यू में क्या पूछा जाएगा, क्या पूछा जाता है. कैंपस में आपको जगह-जगह इंटरव्यू की तैयारी कराने वाले पोस्टर भी चिपके मिलेंगे जो पंद्रह दिन में एंकर और रिपोर्टर बनाने वाली कंपनियों की तरह दो-तीन दिन में आपको इंटरव्यू की तैयारी कराने का दावा करते हैं.

मेरी सलाह है कि इन सबका कोई फायदा नहीं हुआ है और न होगा.

आप पूछेंगे कि आखिर ऐसे में इंटरव्यू की तैयारी कैसे की जाए. आप बस मेरी कुछ बातों का ध्यान रखें तो इंटरव्यू में आपके चयन की संभावना बेहतर हो जाएगी.

क्या तैयारी करें..?

सबसे पहले तो आप ये समझ लें कि ये कोई यूपीएससी का इंटरव्यू नहीं है. ये पत्रकारिता का इंटरव्यू है और सामने वाला आपसे उन्हीं समझदारी का परिचय देने की अपेक्षा रखेगा, जिसकी उम्मीद एक पत्रकार से की जाती है.

इंटरव्यू में आपमें सिर्फ दो ही चीजों को देखने की कोशिश की जाती है. पहला कि आपको पत्रकारिता की कितनी समझ है और दूसरा कि आजकल की बड़ी खबरों से आप कितना वास्ता और सरोकार रखते हैं. तो मेरी सलाह ये है कि ज्यादा इधर-उधर सर खपाने से अच्छा होगा कि आप फ्रंटलाइन, आउटलुक और इंडिया टुडे के पिछले कुछ महीनों के अंक उठाएँ और चाट जाएँ. फ्रंटलाइन एक अच्छी पत्रिका है इसलिए उसकी कवर स्टोरी को अच्छे से पढ़ें, गहराई से समझें और महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर अपनी एक समझ बनाने की कोशिश करें.

आठ-दस ताजे मुद्दों की लिस्ट बनाएँ और उन्हें अच्छे से तैयार कर लें. आपको सलाह दूंगा कि इन सभी विषयों को किसी एक से नहीं, बल्कि दो या तीन पत्रिकाओं या अखबारों से पढ़कर अपनी राय बनाएं. इससे उस विषय पर आपकी पकड़ मजबूत होगी और उसके अनेक आयाम आपकी समझ में होंगे.

इंटरव्यू किस तरह से होता है....

इंटरव्यू के लिए जब आप जाएँगे तो आपको तीन तरह की प्रक्रिया से गुजरना होगा. पहला, आपके सभी अकादमिक डिग्रियों पर नजर डाली जाएगी. दूसरा, ग्रुप डिस्कशन और तब जाकर होगा इंटरव्यू.

कागजातों की जाँच के बाद आप लोगों के पाँच-छह ग्रुप बना दिए जाएंगे. ग्रुप डिस्कशन और इंटरव्यू दोनों में हिंदी विभाग के हेड होंगे और उनके साथ होंगे दो-तीन बड़े पत्रकार. ग्रुप डिस्कशन में किसी एक कॉमन टॉपिक पर चर्चा करने कहा जाएगा. हर उम्मीदवार को अपने विचार रखने के लिए दो-तीन मिनट का समय मिलेगा. आपको बस इतनी देर में ही उस विषय पर ऐसी बातें रखनी हैं जो सुनने वाले को प्रभावित कर सके.

ग्रुप डिस्कशन के बाद आपको इंटरव्यू के लिए बुलाया जाएगा. आपसे इंटरव्यू में ये जानने की कोशिश की जाएगी कि आप में पत्रकार बनने के कितने लायक हैं. इंटरव्यू पैनल में बैठे लोग ये अच्छी तरह से जानते हैं कि ज्यादातर उम्मीदवार या तो यूपीएससी और बैंकिंग की तैयारी कर रहे होते हैं या फिर मीडिया की चकाचौंध भरी दुनिया में आना चाहते हैं.

इंटरव्यू पैनल आप में इस उम्मीदवार को खोजने की कोशिश करते हैं जिसमें असल पत्रकार बनने का जूनुन होता है. जिन्हें भारत की शक्ल महानगरों के मॉल और उफान मारते शहरी बाजार में ही नहीं विदर्भ और बुंदेलखंड में मर रहे किसानों में भी दिखे. जो सिर्फ टाटा की नैनो के लॉंच की तारीख ही न याद रखे बल्कि ये भी मालूम रखे कि नंदीग्राम, सिंगुर और पॉस्को में लोग क्यों मारे गए.

आप ये जान लीजिए कि आप जैसी ही किसी विषय पर मुँह खोलेंगे, पैनल के लोगों को आपकी गहराई का अंदाजा हो जाएगा. पैनल आपसे कुछ व्यक्तिगत और पढ़ाई-लिखाई से जुड़े सवाल भी पूछ सकता है और आम तौर पर इस तरह से सवाल सबसे पहले पूछे जाते हैं ताकि आपकी नर्वसनेस को खत्म किया जा सके. उसके बाद के सवाल-जवाब में आपका एक गलत जवाब आपको "पाँचवीं पास से ज्यादा तेच नहीं हूँ" बना सकता है.

किन बातों का ध्यान रखें...

अक्सर लोग ये गलतफहमी पाल लेते हैं कि हम हिंदी पत्रकारिता में एडमिशन के लिए आए हैं तो धांसू टाइप की हिंदी बोलने का जबर्दस्त असर होगा. पर ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. सलाह ये है कि आप बोलचाल की आम भाषा में जवाब दें और इसमें अंग्रेजी के शब्द आपकी जुबान पर आना चाहें तो उन्हें रोकने की कोई जरूरत नहीं है. असल में पैनल की अपेक्षा रहती है कि बच्चे की हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही ठीक हो. और, वैसे भी जिस क्षेत्र में आप कदम रखने जा रहे हैं, वहां इन दोनों भाषाओं की समझ के बिना काम नहीं चलने वाला.

ग्रुप डिस्कशन में आपका वास्ता ऐसे विद्वान लोगों से भी पड़ सकता है जो किसी को बोलने का मौका नहीं देना चाहेंगे. आप उन्हें इशारा करें और अपनी बात रख दें. पैनल की नजर हर चीज पर होती है. किसी को बोलने का मौका न देना और लगातार बोलते रहना नुकसान ही पहुँचाता है. हाँ, बोलते वक्त चिल्लाएं नहीं, आराम से बोलें.

कपड़े सादे पहनें. कुर्ता-पायजामा और चप्पल में न जाएं तो बेहतर है. ये आपके पत्रकार बनने की गारंटी नहीं देते. जींस और टीशर्ट का मोह भी न रखें. पहनावा औपचारिक हो तो भला.

बॉडी लैंग्वेंज का ख़ास ख्याल रखें लेकिन ख्याल रखने के चक्कर में नर्वस होकर आप उसे बिगाड़ भी सकते हैं. कहने का मतलब यह है कि शालीनता के साथ उठें, बैठें, अंदर जाएँ, बाहर निकलें और बात करें.
इंटरव्यू का अनुपात आम तौर पर एक-तीन का होता है. यानी हर तीन में एक ही का चयन होना है. अगर आपको मेरी सलाह का कोई हिस्सा आपके काम आता है तो मेरी कोशिश सफल हो जाएगी और मुजे भी ज़रूर बताएँ.



प्रदीप सूरीन

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