पक्के तौर पर कह सकता हूं कि आप में से कई ऐसे होंगे जो लिखित परिक्षा देने के बाद से ही इंटरव्यू की तैयारी शुरू कर चुके होंगे और कई ऐसे जिन्होंने लिखित परीक्षा न निकलने का आकलन किया होगा और वो अभी कदम पार करने की खुशी ही सेलिब्रेट कर रहे होंगे.
लेकिन अब जबकि दिल्ली के लोगों के लिए दो दिन और बाहर वालों के पास तीन दिन बचे होंगे तो ये बात बेमानी होगी बताना कि कौन-कौन सा टॉपिक पढ़ा जाना चाहिए. फिर भी अगर आप उत्तराखंड की तबाही, मोदी-नीतीश मामला, रुपया का गिरता ग्राफ, तुर्की में प्रदर्शन जैसे मुद्दे को पढ़-जान लेते हैं तो संभावना है कि कुछ तुक्का भिड़ भी जाय.
चलिए इन गंभीर-समकालीन मुद्दों से अलग बात करते हैं इंटरव्यू के बने बनाए उस फॉर्मूले या कॉकटेल की जो हर जगह फिट बैठ जाती हैय. मसलन, आप जिस राज्य, जिले से हैं वहां की ऐतिहासिकता, समकालीन राजनीतिक हलचल (बिहार वाले खासकर अलर्ट रहें), आप जर्नलिज्म में क्यों आना चाहते हैं, आपने जिस सब्जेक्ट में अपने तीन साल देकर ग्रेजुएट हुए हों उसकी जानकारी, अगर लिखने-पढ़ने की रुचि है तो फिर साहित्य की चर्चा, कुछ पत्रकारों के नाम, कुछ एंकरों के नाम, कुछ साहित्यकारों के नाम, हाल के नोबल विजेताओं के नाम से लेकर आपसे आम आदमी पार्टी, नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना और फिर अगले विधानसभा चुनाव-लोकसभा चुनाव के बारे में आपका आकलन पर सवाल पूछे जा सकते हैं.
ये तो हुई सवालों की बात. अब बारी होगी आपके बात करने की. आप अपनी खासियत, खामियां, उपलब्धि सब कुछ गिना सकते हैं और पूछा भी जा सकता है. अपने बारे में बोलने का सेगमेंट सबसे कठिन होगा. इसे जीतने के लिए आपके जवाब सही-गलत नहीं होंगे बल्कि आपमें एक बेहतर समझ, गंभीर चिंतन और पूरा आत्मविश्वास होना चाहिए. आत्मविश्वास एक शब्द मायने कई. बस, इंटरव्यू के कमरे में प्रवेश करते ही खुद को सरल बनाएं और वहां बैठे लोगों पर अपनी एक मुस्कान दे मारें. माने कि पूरा परिवार जैसा माहौल बना आएं. लगे कि आप अपने अंगना में पिताजी से मिलने आए दोस्त को अपने बारे में बता रहे हैं.
हां, ये डर निकालना होगा कि रिजल्ट क्या होगा. फोकस इस बात पर रहे कि भले एडमिशन हो न हो, वहां बैठे लोगों तक अपनी पूरी बात पहुंचाना ज्यादा महत्वपूर्ण सफलता है. एक टिप्स ये भी रख लीजिए- अगर आपको लगे कि आपका कोई मजबूत पक्ष है तो फिर देर न कीजिएगा इंटरव्यू को अपने उस पक्ष की ओर ले जाने में. बस, वहां पहुंच अपने ज्ञान की धाराएं खोल दीजिए लेकिन याद रहे सब कुछ संतुलित हो.
और अंत में, आप एक पत्रकार बनने आए हैं. चाहे एडमिशन हो न हो, इंटरव्यू अच्छा जाय न जाय लेकिन आपके भीतर के पत्रकार की संवेदनशीलता नहीं जानी चाहिए. जो भी कहें, जितना कहें अपने दिल से कहें और पूरी संवेदनशीलता के साथ अपनी बात रखें. जीत आपकी ही होगी.
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