हालाँकि यह लेखक की निजी राय है लेकिन लेख के प्रारंभ में ही यह स्पष्ट करना ज़रूरी है कि किसी भी प्रोफेशनल कोर्स में दाखिला ही अपने आप में उस क्षेत्र में सफलता की गारंटी नहीं होती.फिर चाहे वह प्रबंधन का क्षेत्र हो या पत्रकारिता का. इन पाठ्यक्रमों में दाखिले की तैयारी से पूर्व अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं, अपने रुझान और जीवन उद्देश्य इत्यादि के बारे में ईमानदारी से मंथन और आत्ममूल्यांकन ज़रूरी है.
हिंदी पत्रकारिता का स्वरूप पिछले डेढ़-दो दशकों में तेजी से बदला है इस क्षेत्र में रोजगार के बढ़ते अवसर से इस कोर्स के प्रति युवाओं का आकर्षण बढ़ना भी स्वभाविक है.लेकिन रोज़गार के अवसरों को भुना पाने के स्तर पर डिप्लोमाधारकों के बीच कई बार भारी अंतर पाया जाता है.पाठ्यक्रम के संचालक, संस्थान में पढ़ाने वाले शिक्षक और संपादक आम तौर पर यह शिकायत करते हैं कि इस क्षेत्र की चुनौतियों के हिसाब से उन्हें जिस तरह के छात्रों की तलाश होती है, वे कई बार मिल नहीं पाते.
भारतीय जनसंचार संस्थान का हिंदी पत्रकारिता पाठ्यक्रम एक समेकित पाठ्यक्रम हैं जिसमें छात्रों को प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और कुछ हद तक वेब मीडिया, तीनों तरह के माध्यम के लिए तैयार किया जाता है. पाठ्यक्रम में दाखिले हेतु ली जाने वाली परीक्षा में प्रायः ऐसे ही प्रश्न पूछे जाते हैं जिससे छात्रों का पत्रकारिता के प्रति रुझान, समसामयिक घटनाओं के प्रति जागरूकता और समाचार की समझ का पता चल सके. लेकिन सबसे अहम है अंग्रेज़ी ज्ञान की परीक्षा.
देखा जाए तो आज की हिंदी पत्रकारिता कई मायनों में अनुवाद आधारित पत्रकारिता हो चुकी है. समाचारों का मूल श्रोत अंग्रेज़ी में ही उपलब्ध होता है. कुछ अपवादों को छोड़ दें तो बड़ी समाचार एजेंसियों के हिंदी अनुभाग उनके अंग्रेज़ी रिसोर्स का ही अनुवाद होता है. फीचर लिखने के लिए भी श्रोत सामग्री अंग्रेजी में उपलब्ध होती है. टीवी और वेब मीडिया की स्थिति भी कोई अलग नहीं है. बिजनेस अख़बारों के कथित हिंदी संस्करणों में भी "पत्रकारों" की जगह कुशल अनुवादकों की मांग है. इस क्षेत्र में प्रवेश के इच्छुक अभ्यर्थी जितनी जल्दी इस बात को समझ लें उनके आगे की राह उतनी ही आसान होगी और इस क्षेत्र में सफलता की संभावना भी उतनी ही प्रबल.
कार्यक्षेत्र की इस ज़रूरत के मद्देनज़र कई पत्रकारिता संस्थान प्रवेश परीक्षा में अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद के ज्ञान की परीक्षा लेने लगे हैं. भारतीय जनसंचार संस्थान भी इससे अलग नहीं है.
दूसरी सबसे अहम बात है अच्छी और शुद्ध हिंदी लिखने की कला. पिछलें कुछ सालों में यह देखने को मिला है कि नई पीढ़ी में अच्छी और शुद्ध हिंदी लिखने वालों की संख्या में निरंतर कमी आती जा रही है. पत्रकारिता के क्षेत्र में सफलता के लिए, किसी एक भाषा, कम से कम अपनी भाषा पर तो अच्छी पकड़ आवश्यक है. क्योंकि समाचार, विश्लेषण, रिपोर्ट, फीचर या आलेख की कॉपी लिखते समय यदि आप भाषा के मानक स्वरूप का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे तो वह एक अच्छी कॉपी नहीं मानी जाएगी. हमारे पत्रकार बंधु बताएंगे कि कई बार शब्दों के चयन के स्तर पर आपस में कितना विचार-विमर्श होता है. क्योंकि एक गलत शब्द आपकी पूरी कहानी का भाव बदल सकता है और अर्थ भी. इसलिए शब्दों के सही प्रयोग से अच्छी भाषा लिखने, भाषा के साथ प्रयोग, उसे सरल और रुचिकर बनाने की कला से आप परीक्षक को प्रभावित कर सकते हैं. प्रश्न पत्र में पूछी गईं टिप्पणियाँ लिखते समय आप इस बात का ध्यान रखें.लिखने का नियमित अभ्यास और अलग-अलग तरह के विषयों के अध्ययन से आपकी भाषा में निखार आएगा. इसका कोई शॉर्ट-कट नहीं है और यह एक सतत प्रक्रिया है.
इस परीक्षा में पूछे जाने वाले कुछ प्रश्न पत्रकारिता के प्रति अभिरुचि पर भी आधारित होते हैं. जैसे, आपको अपने पसंदीदा अखबार या समाचार चैनल या कार्यक्रम की समीक्षा करने के लिए कहा जा सकता है.इसके लिए आपको समाचार पत्रों का नियमित अध्ययन, समाचार पत्रों की भाषा, ले-आऊट, समाचारों के चयन और विभिन्न कोणों से एक ही समाचार की पड़ताल, राष्ट्रीय समाचार-पत्रों के कुछ चर्चित स्थायी स्तंभों, वरिष्ठ संपादकों, पत्रकारों और टिप्पणीकारों के बारें में सामान्य जानकारी की आवश्यकता होगी.
इसके अलावा देश-दुनिया के राजनीतिक-आर्थिक घटनाक्रमों पर आपकी जानकारी और आपके नजरिए को भी आंका जा सकता है. इसलिए इन घटनाओं को एक बड़े परिप्रेक्ष्य में देखने और उसका विश्लेषण करने का अभ्यास ज़रूरी है. समाचार पत्रों और पत्रिकाओं का गहराई से नियमित अध्ययन करना इस प्रयास में सहायक हो सकता है. चर्चा में रहे व्यक्तियों और स्थानों के बारे में भी प्रश्न पूछे जाते हैं. महत्वपूर्ण शब्द-संक्षेप (एबरीविएसन्स) भी पूछे जाते हैं.
यहाँ यह याद रखना ज़रूरी है कि भारतीय जनसंचार संस्थान में पत्रकारिता कोर्स की अवधि केवल नौ महीने की है. इस दौरान संस्थान आपको समाचार माध्यमों की कार्यशैली, इन माध्यमों में प्रयोग की जाने वाली भाषा, समाचार, रिपोर्ट या फीचर लेखन की शैली और मीडिया के नवीनतम तकनीकों से जुड़ी जानकारियाँ ही देता है. पढ़ाई गई चीजों को व्यवहार में लाने के भी यह भरपूर अवसर देता है. लेकिन कम अवधि का कोर्स होने के कारण संस्थान भी अपेक्षा रखता है कि उसके विद्यार्थी एक हद तक समझदार हों और खबरों की दुनिया से वाकिफ हों. संस्थान के पास अपना प्रेस, एफएम रेडियो केंद्र, टीवी स्टूडियो और कंप्यूटर लैब भी है.
लेकिन देश-दुनिया और किसी क्षेत्र विशेष से जुड़ी जानकारियाँ देने या किसी खास स्ट्रीम में आपको पारंगत बनाने का अवसर संस्थान के पास नहीं होता. इसलिए समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था की आधारभूत समझ की अपेक्षा संस्थान आपसे पहले ही करता है. प्रवेश परीक्षा और इंटरव्यू के दौरान इसकी जाँच भी की जाती है. इसलिए जहाँ तक हो सके अधिक से अधिक जानकारियाँ अर्जित करने और देश-दुनिया से जुड़ी घटनाओं के प्रति अपने आँख और कान खुला रखने की कोशिश करें. और संभव हो तो नाक भी क्योंकि आने वाले दिनों में एक पत्रकार के तौर पर आपको 'नोज़ फोर न्यूज़' की आवश्यकता होगी यानि एक ऐसे नाक की जो घटनाओं में समाचार को सूँघ सके.
इस वर्ष की प्रवेश परीक्षा भाग ले रहे सभी अभ्यर्थियों को आईआईएमसी एलुमनी एसोशिएशन की ओर से शुभकामनाएँ.
सहयोगः- शशि झा
1 comment:
This is indeed a great step taken by the IIMC alumni association towards guiding many of iimc aspirants to get entry into the country's prestigious institute. long live iimcaa
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