समाचार चैनल आजतक के कार्यकारी संपादक दीपक चौरसिया आईआईएमसी के छात्र रहे हैं. नए बैच के छात्रों को उनका यथोचित मार्गदर्शन भी मिलता रहता है. आईआईएमसी एलुमनी मीट 2007 के मौके पर प्रकाशित स्मारिका 'ब्रिजेज़' में छपे उनके साक्षात्कार का यह संपादित अंश सवाल-जवाब के रूप में पेश है. इसमें बहुत ऐसे मंत्र हैं जो कैंपस से लेकर कंपनी तक आपके काम आ सकते हैं.
पत्रकारिता में आने का इरादा कैसा बना...
लिखने-पढ़ने और पत्रकारिता का शौक पहले से था. होलकर कॉलेज, इंदौर से बीएससी करने के बाद जब कई तरह के फॉर्म भर रहा था तो आईआईएमसी भी उनमें एक था. टेस्ट और इंटरव्यू में पास होकर पहली बार दिल्ली पहुंचा. मेरी जिंदगी में पत्रकारिता अचानक से आई और सफर शुरू हो गया. और, इस काम से मैं अंदर से संतुष्ट हूं. अगर यहां नहीं आता तो वैज्ञानिक, प्रबंधक होता जो मेरे मन को नहीं भा रहा था. जो हुआ, अच्छा हुआ या ऐसा कहिए कि बहुत अच्छा हुआ.
आईआईएमसी का अनुभव...
बहुत ही अच्छा. जैसा सुना था और सुनकर दिल्ली आया था, बस वैसा ही. पढ़ाई, माहौल, प्रशिक्षण और सबसे बढ़कर सहपाठी भी बेहतर मिले. आज संस्थान से निकले छात्र-छात्रा बड़ी जगहों पर हैं, शीर्ष पदों पर हैं. जो अखबार में हैं, वे भी अच्छी जगह बना चुके हैं. उस समय बैच के बैच को नौकरी मिल जाती थी.
बाजार की जरूरत के लिहाज से पाठ्यक्रम...
पाठ्यक्रम सही है. संस्थान हमेशा इसमें सुधार करती रहती है.
नई पीढ़ी का आकलन....
नए लोगों की क्वालिटी में अंतर आया है. लोग फास्ट फूड पत्रकारिता करना चाहते हैं. झटपट टीवी में नौकरी मिल जाए, एकाध पीटूसी कर लें और लोग ऑटोग्राफ मांगने लगें. नए लोग लक्ष्य तो ऊंची रखते हैं लेकिन उस लिहाज से तैयारियां मुझे नजर नहीं आती.
आईआईएमसी को मिल रही चुनौती....
आईआईएमसी के कोर्स की काफी इज्जत है. हाल के वर्षों में कई नए संस्थान खुले हैं जो इसे चुनौती दे रहे हैं. नए संस्थान भी बाजार की जरूरत के हिसाब से लड़के-लड़कियों को तैयार कर रहे हैं. प्रतियोगिता कड़ी है. निजी संस्थान प्लेसमेंट में पूरी ताकत झोंक रहे हैं. प्रशिक्षण में अव्वल आईआईएमसी प्लेसमेंट को लेकर थोड़ा शिथिल होता जा रहा है. मेरा मानना है कि संस्थान में बाकायदा एक प्लेसमेंट सेल होना चाहिए. यह सेल सिर्फ संस्थान के पुराने विद्यार्थियों को ही संपर्क कर ले तो बच्चों को ढंग से प्लेसमेंट मिल जाए. पहले शिक्षक और छात्र दोनों ही जमकर मेहनत करते थे, उसमें आजकल साफ तौर पर कमी दिख रही है.
शिक्षकों और छात्र-छात्राओं को संस्थान की पुरानी गरिमा को बरकरार रखना चाहिए और इसके लिए दोनों तरफ से मेहनत की जरूरत है. छात्र-छात्राओं को प्रोफाइल हरेक अखबार और हरेक चैनल को जानी चाहिए. बच्चे भी जब प्रशिक्षण के बाद निकलें तो उनमें सामने वाले को प्रभावित करने का माद्दा होना चाहिए. सच्चाई तो यही है कि भारी भीड़ के बावजूद आज भी अच्छे लोगों को हाथों-हाथ उठा लिया जाता है.
अतिथि शिक्षकों का फायदा...
अतिथि वक्ताओं का फायदा तो मिलता ही है क्योंकि वे पत्रकारिता के व्यावहारिक पक्ष से रूबरू कराते हैं. अच्छे लोगों को बाहर से बुलाना ही चाहिए. संस्थान अगर अपने पुराने छात्र-छात्राओं का भी एक पैनल बना ले तो उसे काफी मदद मिलेगी. संस्थान से निकले बहुत सारे लोग बड़ी जगहों पर और ऊंचे पदों पर हैं. प्लेसमेंट के ख्याल से भी छात्र-छात्राओं को उनके आने से ज्यादा फायदा होगा.
एलुमनी एसोसिएशन की भूमिका...
एलुमनी एसोसिएशन को और सक्रिया होना चाहिए. एसोसिएशन को एक विंग बनाना चाहिए जो नए लड़कों से पुराने लोगों को इंटरेक्शन कराए.
आपका कैरिअर....
1992-93 में आईआईएमसी से डिप्लोमा करने के बाद करीब डेढ़ साल नवभारत में रहा. उसके बाद 95 में न्यूज़ट्रैक और फिर आजतक. बीच में कुछ दिन के लिए डीडी न्यूज़ में भी रहा.
डीडी न्यूज़ से क्यों लौट आए...
सरकारी विभाग में रहकर बहुत कुछ बदल पाना संभव नहीं होता. इसलिए अपने घर 'आजतक' लौट आया. नया अनुभव लेने के मकसद से वहां गया था और वह हम दोनों के लिए अच्छा रहा. मेरे कार्यकाल में डीडी न्यूज़ केबल और सैटेलाइट होम के क्षेत्र में दूसरे पायदान पर पहुंची.
डीडी युग के बाद की टीवी पत्रकारिता...
बहुत ज्यादा प्रतियोगिता है. बहुत सारे चैनल खुले हैं. बाजार में बूम आया है और इस वजह से पत्रकारिता के संस्थानों की भी बाढ़ आ गई है. आज लोग घर बैठे हजारों मील दूर की चीजें देख रहे हैं. निठारी कांड हो या जेसिका लाल का मामला, टीवी चैनल सामाजिक मुद्दों और सरोकार पर आक्रामक पत्रकारिता कर रहे हैं.
अखबारों का भविष्य...
अखबार बना हुआ है और बना ही रहेगा. अखबार के साथ प्लस प्वाइंट यह है कि वे स्थायी हैं लेकिन टीवी पर जो दिख रहा है, बस वही दिख रहा है. जो दिख गया, उसे फिर से नहीं देखा जा सकता. टीवी चैनलों के आने या बढ़ जाने से अखबारों को न तो कुछ हुआ है और न होगा. बल्कि नए अखबार आए हैं, उनका बाजार, उनका व्यापार, उनकी पहुंच बढ़ी है. दोनों साथ-साथ चलेंगे और अपना-अपना काम करेंगे.
नए पत्रकारों को सलाह....
सलाह नहीं नसीहत. अगर अंदर कुछ नहीं होगा तो कोई काम नहीं आएगा. जमकर पढ़िए, देश-दुनिया को जानिए और समझिए. हर तरह का काम सीखिए और जो काम कीजिए, उसे तत्परता से करें.
3 comments:
सर.. चौरसिया जी के..... मेरा जोश भरा... सेल्यूट...
मैं कहता हुं कि "दीपक चौरसिया" बनना चाहता हुं.....
मै अभी... पी०जी० के लिये आई आई एम सी और जामिया की प्रवेश परीक्षा देने जा रहा हुं।
मेरा नाम कृष्णा राजवंश है और मैं जनता टीवी में न्यूज़ एंकर और प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत हूं.......मैं दीपक जी को तहे -दिल से धन्यवाद देता हूं जिन्होंने मुझे एक ऐसे पथ पर चलने का सपना दिखाया और वो सपना आज पूरा हो गया है। मैं दीपक सर को उसी रुप में देखता हूं जिस रुप में एकलव्य गुरु द्रोणाचार्य को देखता था। लेकिन वर्तमान में ऐसा अमूमन बहुत कम देखने को मिलता है। वास्तविकता और आज को देखते हुए जिस तरह से इलैक्ट्रोनिक मीडिया का दौर चल रहा है कहीं न कहीं उसमें कर्मठ पत्रकारों की कमी है। लेकिन मेरी नज़र में दीपक सर सम्मानजनक हस्ती हैं। मैं आशा करता हूं कि भविष्य में मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिले.......आपका शुभचिन्तक कृष्णा राजवंश @ 9250001885
धन्यवाद दीपक चौरसिया जी..और आईएमसीएन ब्लोग.. आपके विचारो ने मेरे अन्दर इतना जौश भरा कि मेने आईआईएमसी की प्रवेश परीक्षा पास करली है और अब मै इन्टरव्यू देने के बाद बस आईआईएमसी से पत्रकारिता के गुन सीखने आ रहा हुं!
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