जर्नलिज्म के स्कूलों में दाखिले के वक्त होने वाले इंटरव्यू और करियर शुरू करने के लिये खबरिया चैनलों और अखबार के दफ्तरों की खाक छान रहे नये लड़कों से ये सवाल अक्सरहां पूछा जाता है कि आप जर्नलिस्ट क्यूं बनना चाहते हैं?
इब्तिदा यहीं से करते हैं. क्यूंकि इक क्लासिक जवाब मौके की मारामारी में आपको इक मौका दिला सकती है इसलिये बेहतर है कि ये सवाल किसी और से सुनने से पहले खुद से करें. खुद को लाजवाब करें. यकीन मानिये दोस्तों! आधी मुश्किल आसान हो जायेगी.
जर्नलिज्म दुनियादारी से ज़ुदा चीज नहीं है. कोई रॉकेट साइंस भी नहीं है. बस दुनियाबी बातों को देखने का नजरिया भर है. आपकी संवेदनाएं आपसे सवाल करती हैं या नहीं और आप उन सवालों को दुनिया वालों से पूछते हैं या नहीं. बस इतना ही तो तय करना होता है इक जर्नलिस्ट को. माध्यम चाहे जो हो, टीवी हो, अखबार हो, पत्रिका हो या फिर न्यूज एजेंसी.
आईआईएमसी में दाखिला इक अलग तरह की चुनौती है. नामुमकिन नहीं पर मुश्किल जरूर है. रिटेन और फिर इंटरव्यू. चूंकि ये पेशा लिखने-पढ़ने का है इसलिये रिटेन क्वालीफाई करना लाजिमी है.
हम किसी दिये हुए टॉपिक पर जो कुछ भी लिखते हैं, वह कितना कन्विंसिंग है, कितना कैलकुलेटेड है और कितना सब्जेक्ट ओरियेंटेड है, रिटेन इक्ज़ाम में यही देखा जाता है. अगर लिखने के लिये कन्टेंट ज्यादा न हों तो तरीके से बातें बनाना भी किसी आर्ट से कम नहीं होता पर उसमें इक फ्लो, इक प्रवाह तो होना चाहिये न. अगर आप बात बनाने के उस्ताद नहीं हैं तो इस परीक्षा में ऐसा करके हाथ न जलाएं.
अखबारों में छपने वाले फीचर्स यही तो होते हैं. पर इससे पहले पढ़ने की आदत होनी चाहिये. किताबों से दोस्ती की चाहत रहे. आप जो जीते हैं और जो महसूस करते हैं, उसे लिखें. दुनिया में कहाँ क्या घट रहा है, उससे बाखबर रहें. उस पर अपनी राय बनाएं और तर्क के साथ उसे लिखें.
इक और बात जिसे समझना जरूरी है. कोई संस्थान प्लेसमेंट की गारंटी नहीं देता है और आईआईएमसी में तो कोई प्लेसमेंट सेल भी नहीं है पर इसकी अपनी इक अनकम्पेयेरेबल ब्रांड इक्विटी है. यहां हुनरमंद हाथों को काम मिल जाता है. काबिल लोगों के पास काम चलकर आता है. जॉब मार्केट के अपने फंडे होते हैं. आईआईएमसी आपको जॉब मार्केट में पहुंचा देगा, इसकी गारंटी है पर अपने कदम टिकाये रखना आपकी अपनी जिम्मेदारी होगी.
सबसे अच्छा कुछ नहीं होता है. सब तुलनात्मक है, सापेक्ष है. जो सबसे अच्छा होता है, वो आदर्श कहलाता है. आदर्श एक काल्पनिक स्थिति है. हम आदर्श की ओर बढ़ते हैं और कल्पनायें साकार हो जाती हैं.
जीवन ऐसे ही इक सफर का नाम है. आप नये सफर की तैयारी कर रहे हैं. बेहतर कल के लिये शुभकामनायें.
जीवन ऐसे ही इक सफर का नाम है. आप नये सफर की तैयारी कर रहे हैं. बेहतर कल के लिये शुभकामनायें.
विभुराज चौधरी
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