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Sunday, April 22, 2012

कॉमन सेंस बेहद ज़रूरी है

एनडीटीवी के एसोसिएट पॉलिटिकल एडिटर अखिलेश शर्मा देश के जाने-पहचाने राजनीतिक पत्रकार हैं. इन्होंने दैनिक भास्कर से पारी की शुरुआत की थी. एनडीटीवी से पहले टीवीआई, बीबीसी-लंदन और आजतक में काम कर चुके हैं.
पत्रकार बनने के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ है कॉमन सेंस का होना. न तर्कशास्त्री होना, न मनोवैज्ञानिक होना, न भूगर्भशास्त्री होना, न गणितज्ञ होना. आपके पास अगर कॉमन सेंस है तो आपको पत्रकारिता तो छोड़िए जीवन के किसी चरण में कभी दिक्कत नहीं आएगी.

कॉमन सेंस कोई ऐसा विषय नहीं है जिसके लिए रात-रात भर जाग कर पढ़ाई करनी होती है. ये सेंस मनुष्य के जीवन में विकास के साथ विकसित होता चला जाता है.

मैं इस विषय को अब ज़्यादा नहीं उलझाऊँगा. कॉमन सेंस से मेरा मतलब है अपने आस-पास हो रही घटनाओं के बारे में प्रकृतिजन्य उत्सुकता होना और उनके बारे में जानकारी होना. कोई घटना अगर हो रही है तो क्यों हो रही है, इसका क्या परिणाम होगा, ये सामान्य कौतूहल है जो आपके कॉमन सेंस में बढोत्तरी करता है.

यहाँ इस कॉमन सेंस को जनरल नॉलेज से न जोड़ें. बल्कि अपनी आँखें खुली रखना, अपने कान खुले रखना. आसपास घटित हो रही घटनाओं को समझना, उनका मनन करना आपके कॉमन सेंस को बढ़ाता है.

मैं इस विषय पर ज़ोर इसलिए दे रहा हूँ क्योंकि जब 1993 में लिखित परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मैं आईआईएमसी में इंटरव्यू देने आया तब मेरे साथ एक बहुत मज़ेदार घटना हुई.

मैं आईआईएमसी कैंटीन में अपने वरिष्ठ दीपक चौरसिया के साथ था. उनके साथ उनके एक अन्य साथी थे जो आईआईएमसी से कोर्स कर चुके थे. दोनों की आपस में बात हो रही थी कि घर शिफ्ट करना है और उसके लिए कुछ फर्नीचर की ज़रूरत है.

तब उनकी बातचीत में पंचकुइयाँ रोड का ज़िक्र आया. ये बात हुई कि दिल्ली में फ़र्नीचर के लिए सबसे बेहतरीन जगह वही है. मैं दिल्ली पहली बार आया था और मेरे लिए ये नई जानकारी थी.

संयोग की बात है, अगले दिन इंटरव्यू में मुझसे इंदौर में मेरे पते के बारे में पूछा गया. मैंने इंदौर में अपना पता पंचकुइयाँ रोड ही लिखा था. प्रोफेसर जांगिड़ ने मुझसे पूछा कि इंदौर का ये पंचकुइयाँ रोड़ किस बात के लिए मशहूर हैं. मैंने कहा, श्मशान घाट के लिए. फिर उन्होंने पूछा दिल्ली में भी एक पंचकुइयां रोड है वो किसलिए मशहूर है. मैंने झट जवाब दिया, फ़र्नीचर के लिए. इसके बाद इंटरव्यू ख़त्म.

वैसे ये सिर्फ़ संयोग भर है. लेकिन इस घटना ने मुझे पत्रकारिता का पहला पाठ पढ़ा दिया.

मैं अगर 15 साल पहले के छात्रों को सलाह दे रहा होता तो मैं ये कहता की वो टीवी देखें. भाषा, उच्चारण, ख़बर के चयन, संवाददाताओं के रिपोर्टिंग के तरीके को देखने के लिए. लेकिन अफ़सोस अब हिंदी के चैनलों पर ये सारी चीज़ें नदारद हैं. अंग्रेज़ी के चैनलों को देख कर ही ख़बरों के चयन, प्रस्तुतिकरण आदि की जानकारी हो सकती है. अख़बार हिंदी और अंग्रेजी दोनों के पढ़ें. हिंदी के अख़बारों में अभी पत्रकारिता ज़िंदा है.

अनुवाद प्रश्नपत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इस पर ध्यान दें. ये ध्यान रखें कि अंग्रेज़ी के पत्रकार लंबे-लंबे वाक्य लिखना अपना ज्ञान दिखाने का एक ज़रिया मानते हैं. लेकिन अनुवाद करते वक़्त हिंदी में छोटे-छोटे वाक्य बनाएं. क्योंकि हिंदी की ये सुंदरता है.

ये ध्यान रखें कि जिन विषयों पर आपसे लंबी और छोटी टिप्पणियाँ ली जाती हैं वो दरअसल आपके सामान्य ज्ञान को परखने के साथ आपकी विचारधारा का अंदाज़ा लगाने के लिए भी होती है. इसीलिए ये ध्यान रखें कि आप कॉलेज के कैंटीन में दोस्तों से बहस नहीं कर रहे हैं बल्कि देश के सबसे प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थान की प्रवेश परीक्षा में लिख रहे हैं. इसलिए आपके विचारों में संतुलन बेहद आवश्यक है चाहे आपकी विचारधारा जो भी हो.

ध्यान रहे परीक्षक भाषण पसंद नहीं करते. इसलिए संक्षेप में अपनी बात रखें. जिन विषयों के बारे में जानकारी नहीं हैं उन्हें बिल्कुल न छुएं. पत्रकारिता का एक सिद्धांत ये भी है- When in doubt, keep it out!!

इंटरव्यू में भी लंबी-लंबी छोड़ने से बचें. जितना पूछा गया है सिर्फ़ उतना ही जवाब दें. जवाब आत्मविश्वास से भरपूर होना चाहिए. इंटरव्यू लेने वाले वरिष्ठ पत्रकार होते हैं. वो दुनिया देख चुके होते हैं इसलिए उन्हें चलाने की कोशिश न करें. अगर कोई जवाब नहीं आता है तो माफ़ी मांग लें. आपका कोई नुकसान नहीं होगा.

और सबसे बड़ी बात. ये सवाल देर-सवेर ज़रूर पूछा जाएगा. आप पत्रकार क्यों बनना चाहते हैं. ख़ासकर आज पत्रकारिता की जो हालत है उसे देख कर तो ये सवाल हर आदमी आपसे पूछ रहा होगा. इसलिए बजाए समाज परिवर्तन, देश सेवा जैसी बड़ी-बड़ी बातें करने के साफ़-साफ़ बोल दें कि ये एक अच्छा कैरियर ऑप्शन है और मीडिया के क्षेत्र में जिस तरह से फैलाव हो रहा है उसके बाद आपको ये ठीक लगता है कि इसमें हाथ आज़माया जाए.


शुभकामनाओं के साथ
अखिलेश शर्मा
हिंदी पत्रकारिता, 1993-94

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