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Tuesday, May 13, 2008

आत्मविश्वास जो ताउम्र साथ रहे और गुदगुदाए भी...

श्रीमती वर्तिका नंदा आईआईएमसी में अध्ययन-अध्यापन दोनों का अनुभव रखती हैं. आईआईएमसी में शिक्षण के दौरान 'टेलीविजन और अपराध पत्रकारिता' नाम से उनकी एक किताब आई थी जो इस विधा के छात्र-छात्राओं के लिए बहुत उपयोगी साबित हुई है. वे एनडीटीवी और लोकसभा चैनल से लंबे समय तक जुड़ी रहीं हैं और इस समय सहारा इंडिया (सहारा के सभी समाचार चैनलों) की प्रोग्रामिंग हेड हैं.
 
 
 
आईआईएमसी की प्रवेश परीक्षा देने का अपना ही स्वाद है. ये परीक्षा कम और नई जिंदगी का अंदाज ज्यादा है.
 
मैं मानती हूं कि आईआईएमसी की परीक्षा की तैयारी मानसिक और बौद्धिक दोनों ही स्तर पर की जानी जरूरी है. अगर यह ठान ही लिया है कि पत्रकार तो बनना ही है तो यह मान लीजिए कि अनजाने में ही किसी ने आपके रास्ते में दीए पहले से ही रख दिए होंगे. बशर्ते कि आप दीए की उस लौ में मेहनत करने को भी तैयार हों.
 
यदि परीक्षा में पास हो गए और आईआईएमसी में जगह मिल गई तो बहुत खूब और अगर नहीं भी मिली तो उससे कुछ ऐसा सबक लिया जाए कि वह आगे भी काम में आए.
 
जहां तक तैयारी का सवाल है तो मैं मानती हूं कि दुनिया  भर के पत्रकारिता के तमाम बड़े कोर्सों के पेपरों के मुकाबले यहां पर प्रवेश परीक्षा पास करना कुछ ज्यादा ही आसान है. वजह यह कि बीते सात-आठ सालों में यहां  प्रवेश परीक्षाओं का जबर्दस्त मेकओवर हुआ है और इन्हें आसान बनाने की जैसे मुहिम ही चला दी गई.
 
यही वजह है कि कई बार बेहद होनहार छात्र इन परीक्षा पत्रों को देखकर मायूस हो जाते हैं क्योंकि उन्हें पेपर में अपना ज्ञान और भरपूर तैयारी दिखाने का मुनासिब मौका नहीं मिल पाता और यह  भी कि कई बार औसत छात्र  भी इस परीक्षा को आसानी से पास कर जाते हैं. यह एक कड़वा लेकिन माना हुआ सच है.
 
खै़र पेपर का फार्मेट बन चुका... अब इसमें पास कैसे हुआ जाए, यह सोचना जरूरी है. एक बात तो ये कि परीक्षा से तीन महीने पहले तक के तमाम जरूरी अखब़ार ठीक से पढ़े जाएं. इसका मतलब ये नहीं कि पढ़ाई दिल्ली के दो अखबारों तक सिमट कर रह जाए. यह अधूरी पढ़ाई होगी और जमीनी हकीकत से कटी  भी. बेहतर होगा कि तैयारी करते समय कुछ प्रतिष्ठित क्षेत्रीय अखबारों के संपादकीय को भी खंगाला जाए.
 
टीवी पत्रकारिता की परीक्षा दे रहे छात्रों को भी एक आम दर्शक की तरह समाचार चैनल देखने की बजाय उसके दृश्यों और उसमें सुनाई दे रहे शब्दों के मर्म को छू लेने की कोशिश करनी चाहिए. कुल मिलाकर यह कि जिस भी माध्यम या विभाग की परीक्षा की तैयारी करें, उस माध्यम को एक आम इंसान की तरह देखने की बजाय, एक विश्लेषक की तरह जानने-समझने की आदत डालना बहुत फायदेमंद हो सकता है.
 
जाहिर है कि अगर परीक्षार्थी दो आंखों की बजाय एक तीसरी आंख को भी खुला रखता है और उसके कान सूचना क्रांति की नई तरंगों को पकड़ने के लिए तत्पर रहते हैं तो उसे परीक्षा में पास होने से कोई नहीं रोक सकता.
 
गंभीर पढ़ाई के लिए उन अखबारों का चयन करना होगा जो स्वभाव से गंभीर हैं और जो विकास से लेकर दीन-दुनिया की तमाम खबरों को सलीके से छापने की कोशिश करते हैं. इसी तरह चैनलों और अखबारों की वेबसाइट्स पर नियमित चहलकदमी  भी ज्ञान के दायरे को बढ़ा सकती है.
 
एक कोशिश जर्नलिज्म से जुड़ी बेहतरीन किताबों को पढ़ने की भी होनी चाहिए क्योंकि मजबूत अध्ययन और चिंतन से ही आनसर शीट को निखारा जा सकता है. बेशक देखने में पेपर आसान लगता हो और पास होना भी आसान ही लगे लेकिन सभी उसमें पहला स्थान तो हासिल नहीं कर पाते. सवाल आसान हुए तो सबके लिए आसान होंगे इसलिए ऐसे सवालों वाली परीक्षा में मुकाबला और कड़ा हो जाता है.
 
प्रवेश परीक्षा में मिला एक-एक अंक इंटरव्यू के समय काफी मायने रखता है. इसलिए कोशिश सर्वाधिक नंबर लेने की होनी चाहिए ताकि बाद में अपनी तरफ से कोई कमी रह जाने का मलाल न हो. चयन के बाद जो आत्मविश्वास मिलेगा, वह ताउम्र साथ रहेगा और गुदगुदाएगा  भी.
 
 
 
 
शुभकामनाओं के साथ...
वर्तिका नंदा

1 comment:

bliss Mcdreamy said...

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