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Tuesday, May 27, 2014

आज भी आईआईएमसी जाने को बेकरार हैं हम

अविनाश चंचल हिन्दी पत्रकारिता विभाग के 2011-12 बैच के पासआउट हैं. कैंपस से नौकरी पाकर पटना में एक साल तक हिन्दुस्तान के लिए रिपोर्टिंग की. आजकल ग्रीनपीस के साथ पर्यावरण के मु्द्दे पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लिखा-पढ़ी करते हैं.

अविनाश आईआईएमसी एलुम्नाई एसोसिएशन के संगठन सचिव हैं.

आईआईएमसी एग्जाम की तारीख नजदीक है. मेरे लिए हमेशा से एक खास दिन. आज भी यकीन नहीं होता कि तीन साल हो गए आईआईएमसी का एग्जाम दिए. तीन साल पहले आईआईएमसी की तैयारी के नाम पर मेरे पास न तो फेसबुक का ये पेज था, न ही ये ग्रुप था और न ही ये काउसलिंग वाला मेरी पहुंच में था. न कोई सीनियर. यहां तक कि दूर-दूर तक किसी जानने वाले ने शायद ही आईआईएमसी को कभी नोटिस भी किया हो. मेरे पास था तो सिर्फ पिछले पांच-सात सालों से हर रोज अखबार पढ़ने, मैगजीन को तकिये के नीचे रखकर सोने की आदत और एक सपना- आईआईएमसी.

पिछले एक साल से लगभग हर दिन के अखबार का संपादकीय पन्ना, छह-सात महीने में इकट्ठा हो गया तहलका, इंडिया टुडे, आउटलुक और बाद में चलकर प्रतियोगिता दर्पण जैसे करेन्ट अफेयर्स की कुछ मैगजीन. ये सब जुटा लिया था. उम्मीद है आप लोगों के पास भी कम से कम पिछले चार-पांच महीने के अखबार-मैगजीन होंगे ही.

बस जरुरत है एक नजर लगभग सारे टॉपिक पर दे देने की. एक अच्छी बात है कि ये साल कई मामलों में बेहद ही इवेंटफूल रहा है. ऐसे में कई सारे प्रश्न तो पहले से ही तय मान कर चलिये. चाहे वो आम आदमी पार्टी हो या फिर दिल्ली का चुनाव, अरविन्द केजरीवाल हों या फिर मोदी का प्रधानमंत्री बनना, बीजेपी की जीत में मीडिया और पीआर का रोल हो या ध्रुवीकरण की राजनीति, अमित शाह हों या आजम खान. कांग्रेस के हार की जांच-पड़ताल तो कर ही लीजिएगा. थोड़ा सा ध्यान क्षेत्रीय पार्टियों की हार की तरफ भी डाल लीजिए. नीतीश बाबू और बिहार के नये मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी पर भी नजर डाल लेना ठीक रहेगा.

टीवी वाले दोस्त टीवी और लोकसभा चुनाव, मोदी की जीत में टीवी की भूमिका, सोशल मीडिया और लोकसभा चुनाव, इंडिया फर्स्ट पर तो नजर डालेंगे ही. एड वाले अगर गूगल के एड को ऑब्जर्व करें तो बेहतर हो. ये भी देख-समझ लीजिए कि इस बार आम चुनाव में सबसे ज्यादा वोट कैसे पड़े. कोई सोशल कैंपेन चला या लोगों में गुस्सा था जो बूथ तक पहुंचकर ही उतरा.

बाकी कुछ टॉपिक जैसे युक्रेन, इंडो-चाइना, इंडो-अफगान, सेक्सुअल हैरेसमेंट, महिला आरक्षण बिल, कश्मीर मुद्दा, बीजेपी का साउथ और नोर्थ इस्ट में उदय, भारत में प्रतिबंधित किताबों और फिल्मों के नाम, क्रिमिनल अमेंडमेंट बिल, कॉरपोरेट सोशल रिस्पोंसबिलिटी बिल, तीसरा मोर्चा, धारा 377, खाद्य सुरक्षा बिल, सांप्रदायिक हिंसा बिल, सीरिया, मिड्ल ईस्ट, इजरायल-फिलीस्तीन, साउथ सुडान, अमेरिका की अफगानिस्तान से विदाई, बांग्लादेश चुनाव को भी अगर पढ़ा-देखा जाए तो उत्तम रहेगा.

और अंत में, शुभकामनाओं के साथ
आज भी आईआईएमसी जाने को तैयार और बेकरार एक एलुम्नाई.

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