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Friday, May 23, 2014

न्यूज अलर्ट पढ़ने के बाद कैंडी क्रश न खेलने लगें

अनवर जमाल अशरफ आईआईएमसी 1997-98 बैच में हिन्दी पत्रकारिता के छात्र रहे हैं. अनवर पत्रकार छोड़ कर कुछ भी बनना चाहते थे लेकिन आईआईएमसी पहुंच गए. कोर्स के दौरान ज्यादा वक्त चाचाजी की चाय दुकान और जेएनयू में गंगा ढाबा पर बीतता था. नवभारत टाइम्स, पीटीआई, स्टार न्यूज और एनडीटीवी में काम कर चुके हैं. इन दिनों जर्मनी की विदेश प्रसारण सेवा डॉयचे वेले में काम करते हैं.



पिछले साल के सवाल देख रहा था. बहुत बढ़िया हैं. ऐसे मुद्दों पर पत्रकार की न सिर्फ जानकारी होनी चाहिए, बल्कि उसकी आलोचना भी तैयार करनी चाहिए. आस पास की घटनाओं की समीक्षा बेहद जरूरी है. दो तीन बातें शेयर करना चाहता हूं.

बदलता मीडियाः दिन रात जिक्र होता है कि मीडिया बदल रहा है. टीवी के बाद सोशल मीडिया का रुतबा बढ़ा है और इससे पत्रकारिता भी बदली है. बिलकुल ठीक है. सोशल मीडिया ने खबरों को नया आयाम दिया है. आम पाठक किसी भी खबर पर अपनी राय और अपनी आलोचना पेश कर सकता है. जनसंचार के लिए भला इससे बेहतर क्या होगा कि बहस के नए रास्ते खुलें. लोग खुल कर बहसों में हिस्सा लें. लेकिन सिर्फ कमेंट और लाइक से खबर नहीं समझी जा सकती. खबर समझी जाती है गहराई में जाकर. पढ़ कर, बहसों में हिस्सा लेकर. पत्रकारिता में इससे बचने का कोई रास्ता नहीं.

आलोचनात्मक जानकारीः सामान्य ज्ञान बहुत जरूरी है. खबरों की जानकारी न्यूज अलर्ट से भी हो जाती है. आधी जनता इसके बाद कैंडी क्रश खेलने लगती है. लेकिन पत्रकारिता में जड़ खोदना जरूरी है. कहते हैं कि इसका को "कीड़ा" होता है. कीड़ा तो मैंने नहीं देखा लेकिन अगर हो, तो बहुत अच्छा है. आलोचना तैयार करने के लिए इस कीड़े को खुला छोड़ देना चाहिए. ऐसी जगहों पर पहुंचना चाहिए, जहां से खबर पैदा हुई है. उनकी जानकारी लेनी चाहिए. समझ तैयार होने के बाद आगे बढ़ना ठीक है. मिसाल के तौर पर यह जानना बहुत जरूरी है कि इस साल के चुनाव में बीजेपी की कामयाबी में मीडिया और मैनेजमेंट गुरुओं की कितनी भूमिका रही. लेकिन यह जानना भी जरूरी है कि खुद बीजेपी ने किस तरह सीढ़ियां चढ़ीं, उसकी बुनियाद कहां से फूटी, आरएसएस का उस पर कब, कितना प्रभाव रहा. आदि आदि.

जैसा तू कहता है, वैसा तू लिखः लिखते वक्त हममें से ज्यादातर लोग अचानक दार्शनिक हो जाते हैं. पता नहीं क्यों शब्दों का ज्ञान खोजने निकल पड़ते हैं.

मिसाल देखिएः "मंत्रिमंडल की बैठक के उपरांत सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री जयपाल रेड्डी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए संचार माध्यम में विदेशी विनिवेश हेतु लिए गए निर्णयों को सकारात्मक बताया."

इसे ऐसे भी लिखा जा सकता हैः "मंत्रिमंडल की बैठक के बाद सूचना और प्रसारण मंत्री जयपाल रेड्डी ने मीडिया में विदेशी निवेश को सही ठहराया."

उन्हीं शब्दों का इस्तेमाल करें, जो आम बोल चाल में की जाती है. ध्यान रहे, परीक्षा मूल रूप से भाषा की नहीं, बल्कि इस बात की हो रही है कि आप लोगों की भाषा जानते हैं या नहीं. मास कम्युनिकेशन की बात है. यानी ज्यादा से ज्यादा मास तक बात पहुंचाने की. उन्हें उनकी बात उन्हीं की जुबान में कहना आना चाहिए. भाषा बिल्कुल आसान और छोटे छोटे वाक्यों वाली रखें. शुद्ध हिन्दी जरूरी है.

लिखना बहुत जरूरी हैः अगर अब तक किताबें और संपादकीय पढ़-पढ़ कर आपको लगने लगा हो कि बहुत ज्ञान जमा हो गया है, तो इसे कागज पर उतार दीजिए. लिखते वक्त कई बार हमारे विचार बदलने लगते हैं. हम ठिठकने लगते हैं, सोचते कुछ हैं, लिखते कुछ और हैं. यह झिझक लिखे बगैर खत्म नहीं हो सकती. चाहे उद्देश्य टीवी में काम करना ही क्यों न हो, लिखने की आदत डालनी होगी. परीक्षा हॉल में कई बार सारी जानकारी होने के बाद भी कलम नहीं चलती क्योंकि हमने लिखने की आदत नहीं डाली होती है. अगर अभी तक लिखना शुरू नहीं किया है, तो इसी वक्त करें.

मुझे पता नहीं कि आईआईएमसी अब परीक्षार्थियों को सीधे कंप्यूटर पर जवाब लिखने की इजाजत देता है या नहीं. यह बदलाव जरूरी है. कल के दिन सबको कंप्यूटर पर ही काम करना है, लिहाजा इसके इस्तेमाल की इजाजत दी जानी चाहिए.

दुनिया बहुत बड़ी हैः अगर सिर्फ भारत की राजनीतिक गतिविधियों पर नजर रखते हुए लगने लगे कि अच्छी तैयारी है, तो संभल जाइए. अंतरराष्ट्रीय हलचलें हमें जिस तरह प्रभावित करती हैं, उसकी कल्पना जानकारी के बगैर नहीं हो सकती. अंग्रेजी के एक दो अखबार हर रोज देखने चाहिए. चाहें तो सिर्फ सुर्खियां ही देख लें. अब तो फोन पर ऐप डाउनलोड कर ऐसा करना बहुत आसान है. लेकिन जवाब लिखते वक्त इस बात की सावधानी जरूर रखें कि वही लिखें, जो आपको पता है. अंदाजी तीर न छोड़ें, इसमें दोगुनी गलती की आशंका रहती है.

आपसे मंझे हुए पत्रकार की तरह जवाब की अपेक्षा नहीं की जाती. बल्कि यह देखा जाता है कि विषय पर आपकी समझ कितनी अच्छी है और क्या आप अपनी बातों को तार्किक ढंग से रखने के काबिल हैं. यह बाधा पार हुई, तो समझिए कि आधी दूरी तय है.

रीतेश ने मुश्किल काम दिया है. कमेंट्री बॉक्स में बैठ कर मैच में कमी निकालना आसान है, ग्राउंड पर खेलना मुश्किल. शुभकामनाएं हैं कि आप अच्छा खेलें और खुद पर भरोसा करते हुए मन से खेलें.

1 comment:

मठाधीशी said...

बोरा भर के शुक्रिया ! पिछले दो सालों से आप सभी को पढ़ रहा हूँ ! मेरे पास टेक्निकली एक साल का समय बचा है ! कुछ के पोस्ट तो पढ़ कर ऐसा लग रहा है मानो किसी युद्ध पर जाना हो ! सही है ..आप सभी का अनुभव बोलता है जो आने वाले समय में हम जैसों के लिए मील का पत्थर साबित ही ! ज्यादे लेक्चर नहीं दूंगा !