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Sunday, May 25, 2014

बहुत ज्यादा भाषाई चमत्कार दिखाना समझदारी नहीं

आदर्श शुक्ला हिन्दी पत्रकारिता विभाग के 2012-13 बैच के छात्र रहे हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता करने के बाद आईआईएमसी आना हुआ था. यूनिवर्सिटी में जम कर डिबेट और कविताएं करते थे. फायदा यहां भी मिला. अपने इंटरव्यू में तीन मिनट लंबी अपनी कविता सुना दी थी. कैंपस प्लेसमेंट से एक अखबार और एक रेडियो में नौकरी झटकी. फिलवक्त रेड एफएम, जयपुर में नौकरी बजा रहे हैं. मार्निंग शो का कंटेट तैयार करते हैं. रात के शो में आवाज देते हैं. बाकी मिलने पे खुलते हैं. IIMC पहुंच गए तो आदर्श से मुलाकात जरूर होगी.

अब ज्यादा दिन बचे नहीं तो बहुत ज्यादा कुछ करने की कोशिश भी न करें. आईआईएमसी को बैंक या एसएससी की परीक्षा न समझें तो बेहतर रहेगा. अखबार पढने का शौक हो तो बहुत चिंता करने की जरूरत नही है. अगर अखबार से साबका नहीं पड़ता तो फिर ये जगह आपके लिए नही हैं.

इस साल घटी हर बड़ी घटना आप के काम की है. इस साल खबर में रहा हर व्यक्ति आपके लिए जरूरी है. 10 से 15 नंबर यहां से आ जाएंगे. वाचाल होना आपके मौके कम करता जाएगा. कम से कम शब्दों में सारी बात कहनी होती है. शब्द सीमा को भूल कर भी दरकिनार न करें. इतने से शब्दों में अपनी बात कहना मुश्किल काम है, वो भी तब जब आपसे जानकारी के साथ विचार भी परोसने की अपेक्षा की जाती है. यहां थोड़ा सावधानी की जरूरत है. पत्रकार किसी एक पक्ष में झुका हुआ नहीं होता इसलिए बैलेंस बनाए रखें.

भाषा साफ और आसान रखें. बहुत ज्यादा भाषाई चमत्कार समझदारी नहीं है. लिखने का अभ्यास करें. हर मुद्दे पर लिखें. जब आप लिखेंगे तब जानेंगे कि कम लिखना श्रमसाध्य काम है. आपके लिए नरेन्द्र मोदी जरुरी है तो बोको हरम भी. इसलिए कोई दायरा न बनाएं. अपने विवेक से तय कर लें कि किस घटना, व्यक्ति, संस्था या कंपनी ने दुनिया और मीडिया पर ज्यादा प्रभाव डाला. आपकी कॉपी वो लोग देखेंगे जो मीडिया को निचोड़ चुके हैं इसलिए बेहतर होगा कि ज्यादा चतुराई न दिखाई जाए.

प्रश्नों के उत्तर सटीक और टू द प्वाइंट हो. अरिहंत या प्रतियोगिता दर्पण के पिछले छह अंक चाट जाएं. इंटरनेट पर जागरण जोश और UPSC पोर्टल काम की साबित हो सकती है. आनंद प्रधान का ब्लॉग तीसरा रास्ता, रवीश कुमार का ब्लॉग कस्बा और पुण्य प्रसुन वाजपेयी के ब्लॉग आपको खबरों के पीछे के तार्किक कारणों से परिचित कराने में काम आएंगे. ध्यान रहे कि ये सिर्फ समझ बनाने कि लिए है. इनकी नकल या अंधभक्ति की कोशिश न करें.

और अंत में, संस्थान आपको नहीं चुनता, आप संस्थान चुनते हैं. तो खुद पर भरोसा रखिए. आपके अंदर पत्रकार है तो कोई आपको रोक नही पाएगा. ये शिव खेड़ा मार्का बातें ये बताने के लिए है कि आईआईएमसी कोई असंभव सी चुनौती नहीं है. बस थोड़ी समझदारी और चतुराई से योजना बनाई जाए तो काम हो जाएगा. करने से हो जाएगा. समझ रहे हैं ना.

स्वागत है आईआईएमसी परिवार में.

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