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Saturday, June 28, 2014

वो आपको, अपने बारे में बताएं, कह कर छोड़ देंगे

माधव शर्मा | 2012-13 आरटीवी का सेशन शुरू होने के ठीक 18 दिन बाद पहुंचे और प्रो. राघवाचारी की छोटी वाली डांट खाई. इससे पहले राजस्थान यूनिवर्सिटी से बी.कॉम किया. आज से ठीक एक साल, एक महीने और छह दिन पहले कैंपस प्लेसमेंट के जरिए राजस्थान पत्रिका जयपुर पहुंचे. अभी तक यहीं हैं. जानकारियों का अभाव था लेकिन पत्रकार बनने का जुनून आईआईएमसी तक ले आया. सीख रहे हैं और बढ़ भी रहे हैं. सफ़र जारी है.

बारिश का मौसम था. शाम के वक्त ठंडी हवा चल रही थी. हमारा नया-नया घर बना था. वो भी पूरा नहीं. सिर्फ तीन कमरे, किचन और लेट-बाथ. सीढ़ियां भी नहीं बनी थीं इसलिए टेम्परॉरी लकड़ी की सीढ़ी लगवाई गई थी छत पर जाने के लिए. छत पर जाने का मन हुआ, लकड़ी की सीढ़ी से चढ़ रहा था, ऊपर पहुंचने ही वाला था कि नीचे धौलपुरी लाल और सफेद पत्थर के डिजायन किए हुए फर्श पर आ गिरा. गिरते-गिरते कुछ बैलेंस बना और खुद को ज्य़ादा चोट लगने से बचा लिया. सिर्फ हल्की पट्टी वाली चोट आई. दूसरे दिन फिर उसी लकड़ी की सीढ़ी से छत तक पहुंचा. ठंडी हवा ने पिछले दिन में ले जाकर छोड़ दिया. वाकये को याद किया तो अपनी मूखर्ता पर हंसी आई. मैंने सीढ़ी की लास्ट लकड़ी पर पैर रखने की बजाय सीधे छत पर पैर जमाने की कोशिश की थी और अंजाम ऊपर लिख ही दिया है.

इस सच्ची कथा का ताल्लुक उन सभी से है जिन्होंने हाल ही में आईआईएमसी का इंट्रेंस फाइट कर लिया है. अगर आपके लिए वो छत आईआईएमसी है तो इंटरव्यू वो लकड़ी की अंतिम सीढ़ी है. संभलकर चढ़ोगे तो छत तक पहुंच जाओगे, जल्दबाजी और ओवरकॉन्फिडेंस मेरा जैसा हाल कर सकती है.

तैयारी कैसे करनी है इस पर कई बड़े और छोटे साथियों ने (आईआईएमसी के लिहाज से) काफी कुछ बता दिया है. कुछ ज्यादा नहीं है मेरे पास. जिस दिन भी इंटरव्यू हो, आराम से जाइएगा. जो मन में आए पहनिएगा. जरूरी नहीं कि फॉर्मल पहनें, पुरानी जींस भी चलेगी, पर सलीके से पहनी और धुली हुई (लड़कियों पर भी अप्लाई). जेब में पेन भी लगा लीजिएगा, पत्रकार वाला फील आता है. जैसा शुभम ने लिखा था कि जो भी बोलें, पूरे आत्मविश्वास और तब ही बोलें जब विषय की पूरी जानकारी हो.

जिस कमरे में आपको बिठाया जाएगा, कोई क्लास रूम ही होगा, पक्का. तब दो मिनट सोचना कि आपने पहली बार पत्रकार बनने के बारे में कब सोचा था और कब लगा कि आप पत्रकार ही बनेंगे? सोचना, क्यों बी.कॉम, बीटेक और बीए के बाद पत्रकारिता में आ रहे हैं? जेठ की दोपहरी में दिल्ली आने-जाने के लिए उस पसीने को याद करना जो आपने बस और रेल की टिकट लेने के लिए लंबी लाइन में बहाया. आपके पिठ्ठू बैग की किसी जेब में वो टिकट्स उस समय भी होंगी जब आप इंटरव्यू के लिए किसी कमरे में बैंठे होंगे. उस पल को याद करना जब आप परीक्षा देने घर से रवाना हो रहे थे और मां ने पापा से चुराकर पांच सौ रुपए आपको दिए और कहा कि गर्मी बहुत है, पानी-बानी पीते रहना. दावे से कह सकता हूं कि ये सब आपके आईआईएमसी में आने और आपके देखे सपने को थोड़ी मजबूती देंगे. थोड़ा पानी पीना और बुलावा आते ही कुछ सैंकंड के उस रास्ते में ही रिवाइंड कर लेना कि आज की हेडलाइंस क्या हैं?

वो आपको, अपने बारे में बताएं, कह कर छोड़ देंगे. अब आप तय करेंगे कि खुद का इंटरव्यू कितनी देर चलाना है. लेकिन जो भी बताएं साफ और जानकारी से भरा हो.

आप आइए. ये लाल इमारत आपका दिल खोल कर इस्तकबाल करेगी. पत्रकारिता से ज्यादा ज़िंदगी और लोगों को देखने-समझने का नजरिया देगी. आने वाले 9 महीने आपकी ज़िंदगी के खूबसूरत वक्त में से होगा. यकीन न हो तो आप आकर और जी कर देख लें. अभी आप पढ़िए-लिखिए. इस बार जो साथी जाएं उन्हें अगले साल के लिए अभी से शुभकामना. बस थोड़ा मंथन करिएगा कि इस बार क्या कमी रह गई?

सबको ऑल द बेस्ट.

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